CASE STORIES| मिनर्वा मिल्स लि. बनाम भारत संघ, AIR 1980 SC 1789 & केशवानन्द भारती बनाम केरल शासन, AIR 1973 SC 1461

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(a) केशवानन्द भारती बनाम केरल शासन (AIR 1973 SC 1461)

केशवानन्द भारती बनाम केरल शासन (AIR 1973 SC 1461) भारत के संवैधानिक इतिहास में एक ऐतिहासिक निर्णय था। इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के मूल ढांचे (Basic Structure Doctrine) के सिद्धांत की स्थापना की। इस सिद्धांत के अनुसार, संसद, अनुच्छेद 368 के तहत संविधान में संशोधन करने की अपनी शक्ति के बावजूद, संविधान के मूल तत्वों या बुनियादी ढांचे को नष्ट नहीं कर सकती।

इस निर्णय में निम्नलिखित महत्वपूर्ण कानूनी बिन्दु तय किए गए थे:

• संविधान की संशोधन शक्ति: संसद को अनुच्छेद 368 के तहत संविधान में संशोधन करने की व्यापक शक्ति प्राप्त है।

• मूल ढांचे का सिद्धांत: संसद संविधान के मूल ढांचे या बुनियादी तत्वों को नष्ट करने वाले संशोधन नहीं कर सकती।

• न्यायिक समीक्षा की शक्ति: सुप्रीम कोर्ट को यह निर्धारित करने का अधिकार है कि क्या कोई संशोधन मूल ढांचे का उल्लंघन करता है।

• मूल अधिकारों की सुरक्षा: मूल अधिकार संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा हैं और इन्हें संसद द्वारा भी संशोधित नहीं किया जा सकता।

इस निर्णय का भारतीय संविधानवाद पर गहरा प्रभाव पड़ा है। यह न्यायिक सक्रियता के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था और इसने यह सुनिश्चित करने में मदद की कि संसद संविधान के मूल मूल्यों का उल्लंघन न कर सके।

(b) मिनर्वा मिल्स लि. बनाम भारत संघ, AIR 1980 SC 1789

विधि के महत्वपूर्ण बिन्दु:

• संविधान का मूल ढांचा: इस मामले में, न्यायालय ने संविधान के मूल ढांचे की अवधारणा को स्पष्ट रूप से स्थापित किया। न्यायालय ने कहा कि संसद द्वारा संविधान में संशोधन करने की शक्ति असीमित नहीं है। संसद संविधान के मूल ढांचे को नष्ट करने वाले संशोधन नहीं कर सकती।

• न्यायिक पुनर्विलोकन: न्यायालय ने यह भी तय किया कि न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्ति संविधान के मूल ढांचे का एक आवश्यक हिस्सा है। संसद न्यायालयों की इस शक्ति को छीनने के लिए संविधान में संशोधन नहीं कर सकती।

• मूल अधिकार और नीति निदेशक तत्वों के बीच सामंजस्य: न्यायालय ने यह भी कहा कि मूल अधिकारों और नीति निदेशक तत्वों के बीच सामंजस्य और संतुलन बनाए रखना संविधान के मूल ढांचे का एक आवश्यक हिस्सा है। 42वें संशोधन अधिनियम का खंड 4, जो नीति निदेशक तत्वों को मूल अधिकारों पर प्राथमिकता देता है, असंवैधानिक है क्योंकि यह इस सामंजस्य और संतुलन को नष्ट करता है।